मुनय: पदवीं यस्य नि:सङ्गेनोरुजन्मभि: ।
न विदुर्मृगयन्तोऽपि तीव्रयोगसमाधिना ॥ ३१ ॥
अनुवाद
नारद मुनि ने बताया: अनेकों जन्मों तक इस प्रक्रिया का पालन करते हुए और भौतिक विषयों से दूर रहकर, ध्यान की स्थिति में रहकर और विभिन्न प्रकार की तपस्याएँ करके भी कई योगी ईश्वर को नहीं पा सके।