श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 8: ध्रुव महाराज का गृहत्याग और वनगमन  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  4.8.31 
 
 
मुनय: पदवीं यस्य नि:सङ्गेनोरुजन्मभि: ।
न विदुर्मृगयन्तोऽपि तीव्रयोगसमाधिना ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने बताया: अनेकों जन्मों तक इस प्रक्रिया का पालन करते हुए और भौतिक विषयों से दूर रहकर, ध्यान की स्थिति में रहकर और विभिन्न प्रकार की तपस्याएँ करके भी कई योगी ईश्वर को नहीं पा सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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