तथा चिकीर्षमाणं तं सपत्न्यास्तनयं ध्रुवम् ।
सुरुचि: शृण्वतो राज्ञ: सेर्ष्यमाहातिगर्विता ॥ १० ॥
अनुवाद
जब ध्रुव महाराज, जो एक बालक थे, अपने पिता की गोद में जाने का प्रयत्न कर रहे थे, तब उनकी विमाता सुरुचि को उस बालक से बहुत ईर्ष्या हुई। उसने अत्यंत घमंड के साथ इस प्रकार बोलना प्रारंभ किया जिससे राजा भी सुन सकें।