श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  4.7.47 
 
 
स प्रसीद त्वमस्माकमाकाङ्‌क्षतां
दर्शनं ते परिभ्रष्टसत्कर्मणाम् ।
कीर्त्यमाने नृभिर्नाम्नि यज्ञेश ते
यज्ञविघ्ना: क्षयं यान्ति तस्मै नम: ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, हम आपके दर्शन के लिए प्रतीक्षारत थे क्योंकि हम वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार यज्ञ करने में असमर्थ रहे हैं। अत: हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमसे प्रसन्न हों। आपके पवित्र नाम-कीर्तन से ही सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। हम आपके सामने अपना सिर झुकाकर आपको सादर प्रणाम करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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