त्वं पुरा गां रसाया महासूकरो
दंष्ट्रया पद्मिनीं वारणेन्द्रो यथा ।
स्तूयमानो नदल्लीलया योगिभि-
र्व्युज्जहर्थ त्रयीगात्र यज्ञक्रतु: ॥ ४६ ॥
अनुवाद
हे भगवान्, हे साक्षात् वैदिक ज्ञान! युगों-युगों पूर्व जब आप महान् सूकर अवतार में प्रकट हुए थे तब आपने पृथ्वी को जल के भीतर से ऐसे उठा लिया था जैसे कोई हाथी सरोवर से कमलिनी को उठा लाता है। जब आपने उस विराट सूकर रूप में दिव्य गर्जन किया तो उस ध्वनि को यज्ञ मंत्र के रूप में स्वीकार कर लिया गया और सनक आदि महान् ऋषियों ने उसका ध्यान करते हुए आपकी स्तुति की।