ब्रह्मोवाच
नमस्ते श्रितसत्त्वाय धर्मादीनां च सूतये ।
निर्गुणाय च यत्काष्ठां नाहं वेदापरेऽपि च ॥ ४० ॥
अनुवाद
साक्षात वेदों ने कहा : हे भगवान, हम तुम्हें सादर नमस्कार करते हैं, क्योंकि तुम सतोगुण के आश्रय हो और समस्त धर्म और तपस्या के स्रोत हो; तुम समस्त भौतिक गुणों से परे हो और कोई भी न तुम्हें जानता है और न तुम्हारी वास्तविक स्थिति को।