श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  4.7.40 
 
 
ब्रह्मोवाच
नमस्ते श्रितसत्त्वाय धर्मादीनां च सूतये ।
निर्गुणाय च यत्काष्ठां नाहं वेदापरेऽपि च ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  साक्षात वेदों ने कहा : हे भगवान, हम तुम्हें सादर नमस्कार करते हैं, क्योंकि तुम सतोगुण के आश्रय हो और समस्त धर्म और तपस्या के स्रोत हो; तुम समस्त भौतिक गुणों से परे हो और कोई भी न तुम्हें जानता है और न तुम्हारी वास्तविक स्थिति को।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.