श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  4.7.36 
 
 
यजमान्युवाच
स्वागतं ते प्रसीदेश तुभ्यं नम:
श्रीनिवास श्रिया कान्तया त्राहि न: ।
त्वामृतेऽधीश नाङ्गैर्मख: शोभते
शीर्षहीन: कबन्धो यथा पुरुष: ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  दक्ष की पत्नी ने कहा - हे प्रभु, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि आप यज्ञ में पधारे हैं। मैं आपके चरणों में प्रणाम करती हूँ और आपसे विनती करती हूँ कि आप इस अवसर पर प्रसन्न हों। आपके बिना यह यज्ञस्थल वैसा ही है जैसे कि शरीर बिना सिर के हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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