ब्रह्मोवाच
नैतत्स्वरूपं भवतोऽसौ पदार्थ
भेदग्रहै: पुरुषो यावदीक्षेत् ।
ज्ञानस्य चार्थस्य गुणस्य चाश्रयो
मायामयाद्वयतिरिक्तो मतस्त्वम् ॥ ३१ ॥
अनुवाद
ब्रह्माजी ने कहा: हे भगवान, अगर कोई इंसान आपको ज्ञान प्राप्त करने की अलग-अलग विधियों के जरिए जानने की कोशिश करे, तो वो आपके व्यक्तित्व और शाश्वत रूप को नहीं समझ सकता। आपका स्थान हमेशा भौतिक सृष्टि से परे है, जबकि आपको समझने के प्रयास, लक्ष्य और साधन सब भौतिक और काल्पनिक हैं।