कृच्छ्रात्संस्तभ्य च मन: प्रेमविह्वलित: सुधी: ।
शशंस निर्व्यलीकेन भावेनेशं प्रजापति: ॥ १२ ॥
अनुवाद
उस समय राजा दक्ष प्रेम की पीड़ा से व्याकुल होकर गहरी नींद से जागे। उन्होंने बड़े यत्न से अपने मन को शांत किया, अपने मन की वेग को रोका और पूरी एकाग्रता से भगवान शिव की स्तुति करना शुरू कर दिया।