श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.6.6 
 
 
आशासाना जीवितमध्वरस्य
लोक: सपाल: कुपिते न यस्मिन् ।
तमाशु देवं प्रियया विहीनं
क्षमापयध्वं हृदि विद्धं दुरुक्तै: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मा जी ने उन्हें यह भी बताया कि शिवजी इतने शक्तिशाली हैं कि उनके क्रोध से सभी लोक और उनके प्रमुख लोकपाल तुरंत ही नष्ट हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विशेषकर हाल ही में अपनी प्रिय पत्नी के निधन के कारण वे बहुत ही दुखी हैं और दक्ष के कठोर शब्दों से अत्यंत पीड़ित हैं। ऐसी स्थिति में ब्रह्मा जी ने उन्हें सुझाया कि उनके लिए सबसे अच्छा यही होगा कि वे तुरंत उनके पास जाकर उनसे क्षमा मांग लें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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