श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  4.6.53 
 
 
एष ते रुद्र भागोऽस्तु यदुच्छिष्टोऽध्वरस्य वै ।
यज्ञस्ते रुद्रभागेन कल्पतामद्य यज्ञहन् ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे यज्ञविध्वंसक, कृपया अपना हवि चुन लें और कृपा करके यज्ञ को संपन्न होने दें।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत छठा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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