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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना
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श्लोक 52
श्लोक
4.6.52
देवानां भग्नगात्राणामृत्विजां चायुधाश्मभि: ।
भवतानुगृहीतानामाशु मन्योऽस्त्वनातुरम् ॥ ५२ ॥
अनुवाद
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हे शिव, जिन देवताओं और पुरोहितों के अंग आपके सैनिकों ने समाप्त कर दिये हैं, वे आपकी कृपा से फिर से ठीक हो जाएँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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