श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  4.6.48 
 
 
यस्मिन्यदा पुष्करनाभमायया
दुरन्तया स्पृष्टधिय: पृथग्दृश: ।
कुर्वन्ति तत्र ह्यनुकम्पया कृपां
न साधवो दैवबलात्कृते क्रमम् ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, यदि कहीं भगवान की अजेय माया से पहले से मोहित भौतिकवादी (सांसारिक प्राणी) कभी-कभी पाप कर बैठते हैं, तो साधु पुरुष दयालुतापूर्वक उन पापों को गंभीरता से नहीं लेते। यह जानते हुए कि वे माया की शक्ति से अधीन होकर पाप करते हैं, वह उनका प्रतिवाद करने में अपनी शक्ति का दिखावा नहीं करते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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