श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  4.6.46 
 
 
न वै सतां त्वच्चरणार्पितात्मनां
भूतेषु सर्वेष्वभिपश्यतां तव ।
भूतानि चात्मन्यपृथग्दिद‍ृक्षतां
प्रायेण रोषोऽभिभवेद्यथा पशुम् ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सच्चिदानंद स्वरूप प्रभु, आपकी भक्ति करने वाले भक्तजन मनुष्य, पशु और पक्षियों में आपके रूप का दर्शन करते हैं। अतः वे सब प्राणियों के प्रति समान भाव रखते हैं। वे पशुओं की तरह क्रोध करके शास्त्र की मर्यादा तोड़कर तेज बोलते नहीं हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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