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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना
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श्लोक 38
श्लोक
4.6.38
कृत्वोरौ दक्षिणे सव्यं पादपद्मं च जानुनि ।
बाहुं प्रकोष्ठेऽक्षमालाम् आसीनं तर्कमुद्रया ॥ ३८ ॥
अनुवाद
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उनका बायाँ पैर उनकी दाहिनी जाँघ पर था और बायाँ हाथ बायीं जाँघ पर था। दाहिने हाथ में उन्होंने रुद्राक्ष की माला पकड़ रखी थी। इस प्रकार वे वीरासन की मुद्रा में थे और उनकी अंगुली तर्क-मुद्रा में थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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