श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.6.37 
 
 
उपविष्टं दर्भमय्यां बृस्यां ब्रह्म सनातनम् ।
नारदाय प्रवोचन्तं पृच्छते श‍ृण्वतां सताम् ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  वे तृण (कुश) के आसन पर बैठे थे और वहाँ पर उपस्थित सबों को, विशेषकर महान ऋषि नारद को, परम सत्य के विषय में उपदेश दे रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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