लिङ्गं च तापसाभीष्टं भस्मदण्डजटाजिनम् ।
अङ्गेन सन्ध्याभ्ररुचा चन्द्रलेखां च बिभ्रतम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद
वह हिरण की खाल पर बैठे थे और सभी प्रकार की तपस्या कर रहे थे। शरीर में राख लगा होने से वे शाम के बादल की तरह दिख रहे थे। उनकी जटाओं में अर्धचन्द्र का चिह्न था, जो एक प्रतीकात्मक प्रदर्शन है।