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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना
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श्लोक 35
श्लोक
4.6.35
विद्यातपोयोगपथमास्थितं तमधीश्वरम् ।
चरन्तं विश्वसुहृदं वात्सल्याल्लोकमङ्गलम् ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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देवताओं ने शिवजी को ज्ञानेंद्रियों, मन, बुद्धि और अहंकार के प्रभु के रूप में देखा। वे संपूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं और सभी के प्रति पूर्ण स्नेह रखते हैं, जिसके कारण वे अत्यंत कल्याणकारी हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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