स योजनशतोत्सेध: पादोनविटपायत: ।
पर्यक्कृताचलच्छायो निर्नीडस्तापवर्जित: ॥ ३२ ॥
अनुवाद
वह वटवृक्ष आठ सौ मील ऊँचा था और उसकी शाखाएँ चारों ओर छह सौ मील तक फैली हुई थीं। उसकी मनोहर छाया से सतत शीतलता छाई थी, फिर भी उसमें पक्षियों का चहचहाना सुनाई नहीं पड़ रहा था।