श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  4.6.30 
 
 
वनकुञ्जरसङ्घृष्टहरिचन्दनवायुना ।
अधि पुण्यजनस्त्रीणां मुहुरुन्मथयन्मन: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  ऐसा वातावरण वन में रहने वाले हाथियों को विचलित कर रहा था, जो चंदन के जंगल में झुंडों में एकत्रित हुए थे। बहती हुई हवा वहाँ की अप्सराओं के मन को और अधिक काम-वासना के लिए उत्तेजित कर रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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