श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.6.3 
 
 
उपलभ्य पुरैवैतद्भगवानब्जसम्भव: ।
नारायणश्च विश्वात्मा न कस्याध्वरमीयतु: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही पहले से ही जानते थे कि दक्ष के यज्ञ-स्थल में ऐसी घटनाएँ होंगी, इसलिए पहले से ही पूर्वानुमान हो जाने के कारण वे उस यज्ञ में नहीं गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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