रक्तकण्ठखगानीकस्वरमण्डितषट्पदम् ।
कलहंसकुलप्रेष्ठं खरदण्डजलाशयम् ॥ २९ ॥
अनुवाद
उस दिव्य वन में, पक्षियों का मधुर स्वर मधुमक्खियों की गुंजार के साथ मिलकर स्वर्गिक संगीत रच रहा था। उनकी गर्दन पर लाल रंग की पट्टियाँ थीं जो उन्हें और भी आकर्षक बना रही थीं। झीलों को सुशोभित करते हंसों के जोड़े प्रेम की गाथा गा रहे थे। कमल के नाजुक फूल अपने लंबे डंठलों पर हवा में झूल रहे थे।