श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  4.6.29 
 
 
रक्तकण्ठखगानीकस्वरमण्डितषट्पदम् ।
कलहंसकुलप्रेष्ठं खरदण्डजलाशयम् ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  उस दिव्य वन में, पक्षियों का मधुर स्वर मधुमक्खियों की गुंजार के साथ मिलकर स्वर्गिक संगीत रच रहा था। उनकी गर्दन पर लाल रंग की पट्टियाँ थीं जो उन्हें और भी आकर्षक बना रही थीं। झीलों को सुशोभित करते हंसों के जोड़े प्रेम की गाथा गा रहे थे। कमल के नाजुक फूल अपने लंबे डंठलों पर हवा में झूल रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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