हित्वा यक्षेश्वरपुरीं वनं सौगन्धिकं च तत् ।
द्रुमै: कामदुघैर्हृद्यं चित्रमाल्यफलच्छदै: ॥ २८ ॥
अनुवाद
यात्रा करते-करते देवता लोग सौगन्धिक वन से निकले। वह वन तरह-तरह के फूलों, फलों और कल्पवृक्षों से भरा हुआ था। इस वन से निकलते हुए वे यक्षेश्वर के क्षेत्रों को भी देखते चले गये।