श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  4.6.28 
 
 
हित्वा यक्षेश्वरपुरीं वनं सौगन्धिकं च तत् ।
द्रुमै: कामदुघैर्हृद्यं चित्रमाल्यफलच्छदै: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  यात्रा करते-करते देवता लोग सौगन्धिक वन से निकले। वह वन तरह-तरह के फूलों, फलों और कल्पवृक्षों से भरा हुआ था। इस वन से निकलते हुए वे यक्षेश्वर के क्षेत्रों को भी देखते चले गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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