श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.6.27 
 
 
तारहेममहारत्नविमानशतसङ्कुलाम् ।
जुष्टां पुण्यजनस्त्रीभिर्यथा खं सतडिद्घनम् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  आकाश में रहने वाले देवताओं के विमानों पर मोती, सोना और ढेर सारे कीमती रत्न जड़े होते हैं। देवताओं की तुलना आकाश में बिजली की चमक से जगमगाते बादलों से की गई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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