श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  4.6.14-15 
 
 
मन्दारै: पारिजातैश्च सरलैश्चोपशोभितम् ।
तमालै: शालतालैश्च कोविदारासनार्जुनै: ॥ १४ ॥
चूतै: कदम्बैर्नीपैश्च नागपुन्नागचम्पकै: ।
पाटलाशोकबकुलै: कुन्दै: कुरबकैरपि ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  कैलास पर्वत पर अनेक प्रकार के वृक्ष हैं, जिनमें से उल्लेखनीय हैं— मन्दार, पारिजात, सरल, तमाल, ताल, कोविदार, आसन, अर्जुन, आम्र-जाति, कदम्ब, धूलि-कदम्ब, नाग, पुन्नाग, चम्पक, पाटल, अशोक, बकुल, कुंद और कुरबक। ये सभी वृक्ष सुगन्धित पुष्पों से भरे हैं, जो पूरे पर्वत को सुगन्धित बनाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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