श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.5.8 
 
 
वाता न वान्ति न हि सन्ति दस्यव:
प्राचीनबर्हिर्जीवति होग्रदण्ड: ।
गावो न काल्यन्त इदं कुतो रजो
लोकोऽधुना किं प्रलयाय कल्पते ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  आँधी और धूल भरी हवा की उत्पत्ति को लेकर अंदाज़ा लगाते हुए उन्होंने कहा : न तेज़ हवाएँ चल रही हैं और न ही गायें जा रही हैं, और न ही यह संभव है कि लुटेरों ने ही यह धूल उठाई हो, क्योंकि बहादुर राजा बर्हि अभी भी है, जो उन्हें दंड देगा। फिर यह धूल भरी आँधी कहाँ से आ रही है? क्या पृथ्वी का विनाश अब होने वाला है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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