अन्वीयमान: स तु रुद्रपार्षदै-
र्भृशं नदद्भिर्व्यनदत्सुभैरवम् ।
उद्यम्य शूलं जगदन्तकान्तकं
सम्प्राद्रवद् घोषणभूषणाङ्घ्रि: ॥ ६ ॥
अनुवाद
शिव जी के कई अन्य सैनिक भी उस भयावह व्यक्तित्व वाले असुर के साथ हो लिए, जो बहुत ही ऊँची आवाज में गरज रहा था। वह अपने हाथ में एक बहुत बड़ा त्रिशूल लिए हुए था, जो इतना भयानक था कि मृत्यु को भी मार सकता था। और उसके पैरों में कड़े थे, जो कि गरजते हुए प्रतीत हो रहे थे।