जुहावैतच्छिरस्तस्मिन्दक्षिणाग्नावमर्षित: ।
तद्देवयजनं दग्ध्वा प्रातिष्ठद् गुह्यकालयम् ॥ २६ ॥
अनुवाद
तब वीरभद्र उस सिर को लेकर अत्यन्त क्रोध से यज्ञ की अग्नि के दक्षिण दिशा में आहुति के तौर पर अर्पित कर दिया। इस तरह से भगवान शिव के अनुचरों ने यज्ञ की सारी व्यवस्था तहस-नहस कर दी और समूचे यज्ञ क्षेत्र में आग लगाकर अपने स्वामी के निवास, कैलाश के लिए प्रस्थान किया।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध चार के अंतर्गत पाँचवाँ अध्याय समाप्त होता है ।