श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.5.23 
 
 
शस्त्रैरस्त्रान्वितैरेवमनिर्भिन्नत्वचं हर: ।
विस्मयं परमापन्नो दध्यौ पशुपतिश्चिरम् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  मन्त्रों तथा हथियारों की शक्ति से उसने दक्ष का सिर काटना चाहा, परन्तु दक्ष के सिर की चमड़ी तक काटना भी असंभव हो रहा था। इस प्रकार वीरभद्र अत्यधिक विस्मित हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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