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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस
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श्लोक 22
श्लोक
4.5.22
आक्रम्योरसि दक्षस्य शितधारेण हेतिना ।
छिन्दन्नपि तदुद्धर्तुं नाशक्नोत् त्र्यम्बकस्तदा ॥ २२ ॥
अनुवाद
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तब दैत्य के समान विशाल पुरुष वीरभद्र दक्ष की छाती पर चढ़ बैठा और अपने तीव्रधारी हथियार से उसके सिर को धड़ से अलग करने का प्रयत्न करने लगा, परंतु वह सफल नहीं हो सका।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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