श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  4.5.20 
 
 
भगस्य नेत्रे भगवान् पातितस्य रुषा भुवि ।
उज्जहार सदस्थोऽक्ष्णा य: शपन्तमसूसुचत् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  वीरभद्र ने तुरंत उस भग को पकड़ लिया, जो भृगु के द्वारा शिवजी को शाप देते समय अपनी भौंहें हिला रहा था। वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने भग को ज़मीन पर पटक दिया तथा बलपूर्वक उसकी आँखें निकाल लीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.