भगस्य नेत्रे भगवान् पातितस्य रुषा भुवि ।
उज्जहार सदस्थोऽक्ष्णा य: शपन्तमसूसुचत् ॥ २० ॥
अनुवाद
वीरभद्र ने तुरंत उस भग को पकड़ लिया, जो भृगु के द्वारा शिवजी को शाप देते समय अपनी भौंहें हिला रहा था। वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने भग को ज़मीन पर पटक दिया तथा बलपूर्वक उसकी आँखें निकाल लीं।