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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस
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श्लोक 19
श्लोक
4.5.19
जुह्वत: स्रुवहस्तस्य श्मश्रूणि भगवान् भव: ।
भृगोर्लुलुञ्चे सदसि योऽहसच्छ्मश्रु दर्शयन् ॥ १९ ॥
अनुवाद
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वीरभद्र ने आग में अपने हाथों से आहुति अर्पित कर रहे भृगुमुनि की मूछें नोच लीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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