सर्व एवर्त्विजो दृष्ट्वा सदस्या: सदिवौकस: ।
तैरर्द्यमाना: सुभृशं ग्रावभिर्नैकधाद्रवन् ॥ १८ ॥
अनुवाद
लगातार पत्थरों की वर्षा ने सभी पुरोहितों और यज्ञ में भाग लेने वाले अन्य सदस्यों को अत्यधिक संकट में डाल दिया। वे अपने जीवन के भय से विभिन्न दिशाओं में भाग खड़े हुए।