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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस
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श्लोक 12
श्लोक
4.5.12
बह्वेवमुद्विग्नदृशोच्यमाने
जनेन दक्षस्य मुहुर्महात्मन: ।
उत्पेतुरुत्पाततमा: सहस्रशो
भयावहा दिवि भूमौ च पर्यक् ॥ १२ ॥
अनुवाद
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जब लोगों के बीच आपस में बातचीत हो रही थी, उसी समय दक्ष को हर दिशा से, धरती और आकाश से, अशुभ संकेत दिखाई पड़ने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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