श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 31: प्रचेताओं को नारद का उपदेश  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.31.7 
 
 
तन्न: प्रद्योतयाध्यात्मज्ञानं तत्त्वार्थदर्शनम् ।
येनाञ्जसा तरिष्यामो दुस्तरं भवसागरम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे स्वामी, हमें दिव्य ज्ञान दीजिए जो उस प्रकाश स्तंभ की तरह कार्य करे जिससे हम अज्ञानता के अंधेरे से भरे भौतिक अस्तित्व के सागर को पार कर सकें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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