जिस प्रकार सूर्य की किरणें भी सूर्य से अलग नहीं है, ठीक उसी प्रकार से यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड भी परमेश्वर से भिन्न नहीं है। इसीलिए यह परमेश्वर इस भौतिक सृष्टि के अन्दर सर्वत्र व्याप्त हैं। जब हमारी इन्द्रियाँ जागृत रहती हैं, तो वे शरीर का एक अंग लगती हैं, परन्तु जब शरीर सो जाता है, तो सारी इन्द्रिय क्रियाएँ निष्क्रिय हो जाती हैं। इसी तरह यह पूरा दृश्य जगत हमें अलग लगता है पर यह परम पुरुष से अलग नहीं है।