श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.30.8 
 
 
श्रीभगवानुवाच
वरं वृणीध्वं भद्रं वो यूयं मे नृपनन्दना: ।
सौहार्देनापृथग्धर्मास्तुष्टोऽहं सौहृदेन व: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने कहा: हे राजकुमारों, मैं तुम्हारे मित्रतापूर्ण रिश्तों से बहुत खुश हूँ। तुम सभी एक ही कार्य में लगे हुए हो—भक्ति। मैं तुम्हारी मित्रता से इतना प्रसन्न हूँ कि मैं तुम्हारा कल्याण चाहता हूँ। अब तुम जो वर चाहो माँग सकते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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