श्रीभगवानुवाच
वरं वृणीध्वं भद्रं वो यूयं मे नृपनन्दना: ।
सौहार्देनापृथग्धर्मास्तुष्टोऽहं सौहृदेन व: ॥ ८ ॥
अनुवाद
भगवान ने कहा: हे राजकुमारों, मैं तुम्हारे मित्रतापूर्ण रिश्तों से बहुत खुश हूँ। तुम सभी एक ही कार्य में लगे हुए हो—भक्ति। मैं तुम्हारी मित्रता से इतना प्रसन्न हूँ कि मैं तुम्हारा कल्याण चाहता हूँ। अब तुम जो वर चाहो माँग सकते हो।