श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.30.7 
 
 
पीनायताष्टभुजमण्डलमध्यलक्ष्म्या
स्पर्धच्छ्रिया परिवृतो वनमालयाद्य: ।
बर्हिष्मत: पुरुष आह सुतान् प्रपन्नान्
पर्जन्यनादरुतया सघृणावलोक: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् के गले से लटकती माला घुटनों तक फैली हुई थी। उनकी आठ मजबूत और लंबी भुजाएँ उस माला से सजी हुई थीं, जो लक्ष्मी जी के सौंदर्य को मात देती थी। दयापूर्ण दृष्टि और मेघ-गर्जना के समान वाणी से भगवान् ने राजा प्राचीनबर्हिषत् के पुत्रों को संबोधित किया, जो उनके प्रति समर्पित थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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