श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.30.6 
 
 
काशिष्णुना कनकवर्णविभूषणेन
भ्राजत्कपोलवदनो विलसत्किरीट: ।
अष्टायुधैरनुचरैर्मुनिभि: सुरेन्द्रै-
रासेवितो गरुडकिन्नरगीतकीर्ति: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् का चेहरा अत्यन्त सुन्दर था और उनका सिर एक चमकीले मुकुट और सुनहरे आभूषणों से सजा था। मुकुट झिलमिला रहा था और उनके सिर पर शोभायमान था। भगवान् की आठ भुजाएँ थीं, प्रत्येक में एक विशिष्ट हथियार था। वे देवताओं, महान ऋषियों और अन्य सहयोगियों से घिरे हुए थे, जो सभी उनकी सेवा में लगे हुए थे। भगवान् का वाहन, गरुड़, अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए वैदिक मंत्रों के साथ उनकी महिमा का गुणगान कर रहा था, जैसे कि वह किन्नरलोक का निवासी हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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