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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप
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श्लोक 49
श्लोक
4.30.49
चाक्षुषे त्वन्तरे प्राप्ते प्राक्सर्गे कालविद्रुते ।
य: ससर्ज प्रजा इष्टा: स दक्षो दैवचोदित: ॥ ४९ ॥
अनुवाद
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उनका पिछला शरीर नष्ट हो गया था, लेकिन उसी दक्ष ने, दैवीय प्रेरणा से, चाक्षुष मन्वन्तर में सभी वांछित जीवों का निर्माण किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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