श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  4.30.48 
 
 
ते च ब्रह्मण आदेशान्मारिषामुपयेमिरे ।
यस्यां महदवज्ञानादजन्यजनयोनिज: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी के आदेश से सभी प्रचेता उस लड़की को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कन्या का नाम मारीषा था। जब दक्ष को पता नहीं था की मारीषा ब्रह्माजी की पुत्री हैं, तब भी उसने मारीषा का अनादर किया। फिर ब्रह्माजी के आदेश के अनुसार, दक्ष को मारीषा के गर्भ से जन्म लेना पड़ा। जैसे ही दक्ष को जन्म हुआ, उसे मरना पड़ा और एक बार फिर उसने जन्म लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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