श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  4.30.45 
 
 
ततोऽग्निमारुतौ राजन्नमुञ्चन्मुखतो रुषा ।
महीं निर्वीरुधं कर्तुं संवर्तक इवात्यये ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज, प्रलय के समय में भगवान शिव क्रोध में आकर अपने मुख से अग्नि और वायु छोड़ते हैं। प्रचेताओं ने भी पृथ्वी की सतह को पूरी तरह से वृक्षहीन बनाने के लिए अपने मुंह से अग्नि और वायु को छोड़ा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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