अथ निर्याय सलिलात्प्रचेतस उदन्वत: ।
वीक्ष्याकुप्यन्द्रुमैश्छन्नां गां गां रोद्धुमिवोच्छ्रितै: ॥ ४४ ॥
अनुवाद
तत्पश्चात सर्व प्रचेते समुद्र के जल से बाहर निकल गए। तभी उन्होंने देखा कि पृथ्वी पर सारे वृक्ष इतने बड़े हो चुके हैं कि ऐसा लग रहा था मानो वे स्वर्ग के मार्ग को रोकना चाहते हैं। इन वृक्षों ने सारे पृथ्वी के भूभाग को ढक रखा था। उस समय प्रचेते बहुत क्रोधित हुए।