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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप
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श्लोक 34
श्लोक
4.30.34
तुलयाम लवेनापि न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
भगवत्सङ्गिसङ्गस्य मर्त्यानां किमुताशिष: ॥ ३४ ॥
अनुवाद
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स्वर्ग या ब्रह्म के प्रकाश में विलीन होने से भी एक क्षण की शुद्ध भक्त की संगति अधिक फलदायी है। क्योंकि शरीर त्यागकर मरने वाले जीवों के लिए शुद्ध भक्तों की संगति ही सबसे बड़ा वरदान है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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