श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.30.3 
 
 
मैत्रेय उवाच
प्रचेतसोऽन्तरुदधौ पितुरादेशकारिण: ।
जपयज्ञेन तपसा पुरञ्जनमतोषयन् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  महान ऋषि मैत्रेय ने कहा: राजा प्राचीनबर्हि के पुत्र प्रचेताओं ने अपने पिता की आज्ञाओं का पालन करने के लिए समुद्र के भीतर कठोर तपस्या की। भगवान शिव द्वारा प्रदान किए गए मंत्रों को बार-बार जप कर वे भगवान विष्णु को प्रसन्न करने में सक्षम हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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