श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  4.30.28 
 
 
एतावत्त्वं हि विभुभिर्भाव्यं दीनेषु वत्सलै: ।
यदनुस्मर्यते काले स्वबुद्ध्याभद्ररन्धन ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आप समस्त अशुभ और अनिष्टकारी चीजों के नाशक हैं। आप अपने आराधनात्मक प्रतिमा के विस्तार के माध्यम से अपने दीन-हीन भक्तों पर कृपा करते हैं। आप हम सभी को अपने शाश्वत सेवक समझें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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