श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.30.26 
 
 
नम: कमलकिञ्जल्कपिशङ्गामलवाससे ।
सर्वभूतनिवासाय नमोऽयुङ्‌क्ष्महि साक्षिणे ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आपके द्वारा धारण किया गया वस्त्र कमल पुष्प के केसर के समान पीले रंग का है, किंतु यह किसी भौतिक पदार्थ से नहीं बना है। आप प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में निवास करते हैं और सभी जीवों के सभी कार्यों के प्रत्यक्ष साक्षी हैं। हम आपको बार-बार श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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