श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  4.30.25 
 
 
नम: कमलनाभाय नम: कमलमालिने ।
नम: कमलपादाय नमस्ते कमलेक्षण ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भगवान, हम आपको नमन करते हैं, क्योंकि आपकी नाभि से कमल का फूल निकला है, जिससे सभी जीवों का जन्म हुआ है। आप हमेशा कमल की माला से सजे रहते हैं और आपके चरण सुगंधित कमल के फूल की तरह हैं। आपकी आँखें भी कमल की पंखुड़ियों जैसी हैं, इसलिए हम आपको हमेशा नमन करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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