श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.30.21 
 
 
मैत्रेय उवाच
एवं ब्रुवाणं पुरुषार्थभाजनं
जनार्दनं प्राञ्जलय: प्रचेतस: ।
तद्दर्शनध्वस्ततमोरजोमला
गिरागृणन् गद्गदया सुहृत्तमम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  मैत्रेय ऋषि ने कहा: भगवान के ऐसे बोलने पर प्रचेताओं ने उनसे प्रार्थना की। भगवान जीवन में सभी प्रकार की सफलता प्रदान करने वाले और परम कल्याणकारी हैं। वे परम मित्र भी हैं, क्योंकि वे अपने सभी भक्तों के दुखों को हरने वाले हैं। भगवान के समक्ष होने पर प्रचेता हर्ष से भरकर कांपती हुई वाणी में उनकी प्रार्थना करने लगे। वे भगवान के साक्षात दर्शन करके पवित्र हो गये थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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