श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.30.2 
 
 
किं बार्हस्पत्येह परत्र वाथ
कैवल्यनाथप्रियपार्श्ववर्तिन: ।
आसाद्य देवं गिरिशं यद‍ृच्छया
प्रापु: परं नूनमथ प्रचेतस: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  हे बार्हस्पत्य, राजा बर्हिषत् के पुत्र, जिन्हें प्रचेता कहते हैं, उन्होंने भगवान शिव से भेंट करने के बाद क्या प्राप्त किया, जो मोक्षदाता नारायण को अत्यंत प्रिय हैं? वे वैकुण्ठलोक तो गए ही, परन्तु इसके अतिरिक्त उन्होंने इस जीवन में, अथवा अन्य जन्मों में इस संसार में क्या प्राप्त किया?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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