श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 30: प्रचेताओं के कार्यकलाप  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  4.30.18 
 
 
अथ मय्यनपायिन्या भक्त्या पक्‍वगुणाशया: ।
उपयास्यथ मद्धाम निर्विद्य निरयादत: ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात तुम मेरे प्रति निष्कपट भक्ति विकसित करोगे और भौतिक संदूषण से मुक्त हो जाओगे। उस समय, तथाकथित स्वर्गलोक और नरकलोक में भौतिक सुखों से पूरी तरह से अनिच्छुक होकर, तुम अपने घर, भगवान के धाम में लौट आओगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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